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12 तालों में क्यों बंद है भगवान विष्णु की प्रतिमा:उज्जैन में एक हजार साल पुरानी है परमार कालीन भगवान विष्णु की चारों रूपों वाली बेशकीमती मूर्ति
धार्मिक शहर उज्जैन अपनी कई खूबियों के लिए जाना जाता है। यहां चौंकाने वाले मंदिर और मूर्तियां हैं। ऐसा ही एक मंदिर हैं, जिसमें भगवान विष्णु की मूर्ति 12 तालों में कैद है। इसकी वजह मूर्ति का बेशकीमती और उसका अलग रूप होना। मंदिर पर 24 घंटे पहरा होता है।
भगवान विष्णु की चार मुख वाली प्रतिमा की खासियत जानिए…
शहर के प्राचीन क्षेत्र गढ़कालिका माता मंदिर के पास स्थित विष्णु चतुष्टिका नाम के मंदिर में चार स्वरूप वाली एक बेशकीमती प्रतिमा विराजित है। जिसमें वासुदेव, संकर्षण, अनिरुद्ध और प्रद्युम्न भगवान के ये चार स्वरूप एक ही मूर्ति में दिखाई देते हैं। इसलिए इसे विष्णु चतुष्टिका कहते हैं।
प्रतिमा के अस्त्रों पर हाथ लगाने से निकलती है ध्वनि
भगवान विष्णु की इस महत्वपूर्ण और बहुमूल्य की प्रतिमा में चारों और मूर्तियों पर जो अस्त्र बने हुए हुए हैं उन पर हाथ लगाने से ध्वनि निकलती है। पुरातत्त्व जानकार रमण सोलंकी ने बताया कि विष्णु चतुष्टिका मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग के अधीन है। यह बेशकीमती बहुमूल्य प्रतिमा पुरातत्व की दृष्टि से प्रदेश की धरोहर है। एक हजार साल पुरानी परमारकालीन प्रतिमा के अस्त्र से संगीत निकलता है।
15 सेमी चौड़ी और 25 सेमी ऊंची है प्रतिमा
मूर्ति का आकार 15 सेमी चौड़ी और 25 सेमी ऊंची है। भगवन विष्णु की ये मूर्ति किरीट मुकुट, श्री वत्स, कर्ण कुण्डल, केयुर, कटक, वलय, यज्ञोपवित से अलंकृत है। दुर्लभ मूर्ति होने के चलते इसे 12 तालों में कैद रखा जाता है। इसे सुरक्षित रखने के लिए मंदिर के चार दरवाजों पर हमेशा 12 ताले लगे रहते हैं। पुरातत्व विभाग की अनुमति के बाद ही इसके द्वार दर्शनार्थियों के लिए खोले जाते हैं।
चारों मूर्तियों में अलग-अलग अस्त्र, चारों की अलग पहचान
सम्मुख भाग में वासुदेव स्वरूप है जिनके हाथों में वरदमुद्रा, अक्षमाला, गदा, चक्र एवं शंख है। प्रतिमा पद्मासन में है। संकर्षण स्वरुप में वरदमुद्रा, अक्षमाला, बाण, धनुष और शंख है। अनिरुद्ध के हाथों में वरदमुद्रा, अक्षमाला, ढाल, खडग एवं शंख है। यह प्रतिमा शिल्पशास्त्र की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है और इन सभी अस्त्रों से मधुर ध्वनि निकलती है।
हर समय एक सुरक्षा गार्ड रहता है
यह प्रतिमा मध्य प्रदेश शासन के अधीन और मूर्ति एकांतवास में होने के कारण इसकी सुरक्षा के लिए दिन-रात 3 सुरक्षा गार्ड लगे रहते हैं, जो 24 घंटे निगरानी रखते हैं। यहां पुरातत्व विभाग के कर्मचारी रमेश हिरवे, सुरेश शर्मा, ओम प्रकाश नियमित निगरानी करते हैं। मध्य प्रदेश प्राचीन स्मारक और पुरातत्वीय स्थल तथा अवशेष अधिनियम 1964 के अंतर्गत इसे राजकीय महत्व का घोषित किया गया है।